करदे रिहा
बंदेया
मत कर इतने कर्म
कि खो ही दू खुदको
पा ही ना पाऊं
चलते गए मुसाफिर राहों पर
अंजना सफ़र न जाने किस मोड़ पर ले जाएगा
पीछे मुड़कर आ भी पाएंगे
या चलना ही पड़ेगा
क्यूं करता है तू इतने कर्म बंदेया
क्यों भटकते मेरे कदम है
कैसे समझाऊं खुदको
कि राहों की मंजिल अभी आई ही नहीं
थोड़ी और मेहनत, थोड़े और कदम
मिल गए बस दुनिया से तो सहारे भी मिल जायेंगे
मुझे बेसहारा रह तुझे पाना है
काश मंजिले अभी थोड़ी दूर और हो , सफर मैं मज़ा बहुत आ रहा है
-rp
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